Health Tips: मांस की बजाय शाकाहार खाने से कम हो सकता है मधुमेह, हृदय रोग का खतरा- अध्ययन

सैन फ्रांसिस्को, 25 नवंबर : लाल और प्रसंस्कृत मांस जैसे पशु-आधारित भोजन को नट्स या फलियां जैसे पौधे-आधारित खाद्य पदार्थों के साथ बदलने से हृदय रोग (सीवीडी), टाइप 2 मधुमेह, कोरोनरी हृदय रोग और कुल मिलाकर मृत्यु के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है. एक नए अध्ययन में यह पाया गया है. बीएमसी मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में 37 पूर्व अध्ययनों के परिणामों का विश्लेषण किया गया और इसके निष्कर्षों ने आहार में अधिक शाकाहार को शामिल करने के संभावित स्वास्थ्य लाभों पर प्रकाश डाला.

शोधकर्ताओं ने बताया, “हमारे निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि पशु-आधारित (जैसे, लाल और प्रसंस्कृत मांस, अंडे, डेयरी, पोल्ट्री, मक्खन) की बजाय पौधे-आधारित (जैसे, नट्स, फलियां, साबुत अनाज, जैतून का तेल) खाद्य पदार्थों को अपनाना कार्डियोमेटाबोलिक स्वास्थ्य और किसी भी कारण से होने वाली मृत्यु के मामले में लाभकारी होता है.” उन्होंने पाया कि रोजाना एक अंडे की जगह नट्स लेने से हृदय रोग की मृत्यु दर कम हो जाती है. मक्खन के स्थान पर जैतून का तेल इस्तेमाल करने से भी ऐसे ही परिणाम प्राप्त हुए. यह भी पढ़ें : Health Tips: रात की खराब नींद के बावजूूद मस्तिष्क को स्वस्थ रखता है 20 मिनट का वर्कआउट- शोध

रोजाना 50 ग्राम प्रसंस्कृत मांस के बदले 28 ग्राम नट्स लेने से कोरोनरी हृदय रोग का खतरा कम हो जाता है. दूसरी ओर, अध्ययन में पाया गया कि पोल्ट्री या समुद्री भोजन की जगह नट्स या फलियां खाना अच्छा विचार नहीं है. इस बात के प्रमाण कम ही थे कि लाल मांस को नट्स या फलियों से बदलने से कोरोनरी हृदय रोग का खतरा कम हो जाता है.
शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया कि मक्खन के स्थान पर जैतून का तेल, लाल मांस के स्थान पर नट्स, या रोजाना एक अंडे के स्थान पर नट्स का उपयोग टाइप 2 मधुमेह की आवृत्ति से विपरीत रूप से संबंधित था.

Health Tips: रात की खराब नींद के बावजूूद मस्तिष्क को स्वस्थ रखता है 20 मिनट का वर्कआउट- शोध

लंदन, 24 नवंबर : एक शोध से यह‍ बात सामने आई है कि अगर आपने रात में अच्‍छी नींद नहीं ली है, तो केवल 20 मिनट का व्यायाम आपके मस्तिष्क को स्वस्थ रख सकता है. पोर्ट्समाउथ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए अध्ययन से पता चला है कि नींद, ऑक्सीजन का स्तर और व्यायाम हमारी मानसिक कार्य करने की क्षमता को कैसे प्रभावित करते हैं.

टीम ने पाया कि मध्यम तीव्रता वाले व्यायाम से सोचने की क्षमता में सुधार होता है, चाहे किसी व्यक्ति की नींद की स्थिति या ऑक्सीजन का स्तर कुछ भी हो. यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ स्पोर्ट हेल्थ एंड एक्सरसाइज साइंस (एसएचईएस) के जो कॉस्टेलो ने कहा, ”हम मौजूदा शोध से जानते हैं कि ऑक्सीजन का स्तर कम होने पर भी व्यायाम हमारे सोचने की क्षमता को बेहतर बनाता है लेकिन यह पहला अध्ययन है जो सुझाव देता है कि पूर्ण और आंशिक नींद की कमी के बाद और हाइपोक्सिया के साथ यह मानसिक विकास में भी सुधार करता है.” यह भी पढ़ें : नपुंसकता की समस्या को दूर करने का कारगर इलाज है यह प्याज, रोमांस बढ़ाने के लिए जरूर करें इसका सेवन

उन्होंने कहा, “व्यायाम और इन तनावों के बीच संबंधों के बारे में हम जो जानते हैं, उसमें ये निष्कर्ष महत्वपूर्ण रूप से जुड़ते हैं और इस संदेश को सुदृढ़ करने में मदद करते हैं कि व्यायाम शरीर और मस्तिष्क के लिए दवा है. फिजियोलॉजी एंड बिहेवियर में प्रकाशित अध्ययन में दो प्रयोग शामिल थे, प्रत्येक में 12 प्रतिभागी (कुल 24) थे. पहले में किसी व्यक्ति के संज्ञानात्मक प्रदर्शन पर आंशिक नींद की कमी के प्रभाव को देखा गया, और दूसरे ने कुल नींद की कमी और हाइपोक्सिया के प्रभाव की जांच की. दोनों में सभी प्रतिभागियों ने 20 मिनट की साइकिलिंग के बाद मानसिक विकास प्रदर्शन में सुधार का अनुभव किया.

कॉस्टेलो ने कहा, “क्योंकि हम व्यायाम को एक सकारात्मक हस्तक्षेप के रूप में देख रहे थे, इसलिए हमने अनुशंसित मध्यम तीव्रता वाले एक्सरसाइज का उपयोग करने का निर्णय लिया. यदि व्यायाम अधिक लंबा या कठिन होता तो इसके नकारात्मक परिणाम बढ़ सकते हैं और यह स्वयं तनाव का कारण बन सकता था.” पहले प्रयोग में व्यक्तियों को तीन दिनों में रात में केवल पांच घंटे सोने की अनुमति दी गई थी. प्रत्येक सुबह उन्हें आराम करने के लिए और फिर साइकिल चलाने के दौरान सात कार्य दिए गए. उन्हें कार्य पूरा करने से पहले अपनी नींद और मनोदशा का मूल्यांकन करने के लिए भी कहा गया. परिणामों से पता चला कि कार्यों पर तीन रातों की आंशिक नींद का प्रभाव असंगत था.

पेपर में कहा गया है कि इसका स्पष्टीकरण यह हो सकता है कि कुछ लोग हल्की या मध्यम नींद की कमी के प्रति अधिक लचीले होते हैं. हालांकि, नींद की स्थिति की परवाह किए बिना, मध्यम तीव्रता वाले व्यायाम ने सभी कार्यों में प्रदर्शन में सुधार किया. दूसरे प्रयोग में प्रतिभागियों को पूरी रात बिना नींद के गुजारनी पड़ी और फिर उन्हें विश्वविद्यालय के चरम पर्यावरण प्रयोगशालाओं में हाइपोक्सिक (ऑक्सीजन का निम्न स्तर) वातावरण में रखा गया. ऑक्सीजन का स्तर कम होने के बावजूद, व्यायाम से मानसिक विकास में सुधार जारी रहा.

Type 2 Diabetes: बच्चों में बढ़ रहा है टाइप 2 मधुमेह का खतरा- विशेषज्ञ

लखनऊ, 19 नवंबर : किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के चिकित्सा विशेषज्ञों के मुुताबिक अधिक से अधिक बच्चे टाइप 2 मधुमेह का शिकार हो रहे हैं. केजीएमयू के मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ फैकल्टी मेंबर कौसर उस्मान ने कहा, “जिस सबसे छोटे बच्चे में मैंने मधुमेह का निदान और उपचार किया है, वह कक्षा 7 का छात्र था, जिसके परिवार में मधुमेह का कोई इतिहास नहीं था. ऐसे बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है. बिना किसी पारिवारिक इतिहास के ओपीडी में मधुमेह का निदान किया जा रहा है.” डॉक्टरों का कहना है कि इसके लिए आनुवांशिकी से ज्यादा बदलती आदतों/जीवनशैली को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. केजीएमयू के फिजियोलॉजी विभागाध्यक्ष एनएस वर्मा ने कहा, ”बच्चे अब ज्यादातर घर से बाहर का खाना खाने लगे हैं और यहां तक कि स्कूल में टिफिन लाने से भी बचते हैं.

व्यस्त माता-पिता भी टिफिन के बजाय पैसे देते हैं. इसके अलावा उन पर अच्छा प्रदर्शन करने का काफी दबाव है. इसका उद्देश्य कक्षा 4 या 5 से ही चिकित्सा या इंजीनियरिंग जैसे पेशे पर निर्णय लेना है. हमारे समय में यह सारा दबाव कक्षा 10 के बाद ही आता था.” डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों को डायबिटीज होना समाज के लिए बड़ी समस्या है. उस्मान ने कहा, “सबसे पहले, यदि कोई अन्य मधुमेह रोगी नहीं था, तो मधुमेह के लिए पारिवारिक इतिहास शुरू होता है और दूसरी बात यह है कि यह रोग 17 वर्ष से 40 वर्ष के बीच व्‍यक्ति को प्रभावित करता है.” यह भी पढ़ें :Ayodhya Ram Temple Pran Pratishtha: अयोध्या में बनाई जा रही 80 हजार श्रद्धालुओं के लिए ‘टेंट सिटी’

प्रोफेसर वर्मा ने कहा, ”आईसीएमआर के आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तर प्रदेश में 18 प्रतिशत आबादी, चाहे वह किसी भी उम्र की हो, उसे मधुमेह का खतरा है. आईसीएमआर के अध्ययन के अनुसार वे प्री डायबिटीज श्रेणी में आते हैं. वे अभी भी मधुमेह को होने से रोक सकते हैं, लेकिन इसके लिए उनकी जीवनशैली और खान-पान में बदलाव की जरूरत है.” उन्होंने रोजाना कम से कम 40 मिनट तक व्यायाम करने, एक डाइट चार्ट बनाए रखने और वह खाने का सुझाव दिया जो आपके शरीर के लिए सबसे उपयुक्त हो.

फार्मा उद्योग में 2030 तक 200 अरब डॉलर पर पहुंचने की क्षमता : सचिव अरुणीश चावला

नयी दिल्ली, 17 नवंबर: घरेलू दवा उद्योग में विनिर्माण तथा निर्यात बढ़ाकर मूल्य के हिसाब से चार से पांच गुना होकर करीब 200 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की क्षमता है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने शुक्रवार को यह बात कही. फार्मा सचिव अरुणीश चावला ने यहां भारतीय उद्योग परिसंध (सीआईआई) के एक कार्यक्रम में कहा कि वर्तमान में करीब 50 अरब डॉलर से 2030 तक 200 अरब डॉलर तक पहुंचने के लिए उद्योग को आयात पर निर्भरता कम करनी होगी.

निर्यात के विस्तार पर ध्यान केंद्रित करते हुए सालाना आधार पर दोहरे अंक में बढ़ने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘‘ ‘स्मार्ट’ चिकित्सा का युग हमारे सामने आ रहा है. अगले 20 से 30 साल में जो नई थेरेपी सामने आएंगी, वे वस्तुतः वर्तमान में मौजूद हर कठिन बीमारी के लिए ‘स्मार्ट थेरेपी’ प्रदान करेंगी. हमें उस दौर के लिए तैयार रहना चाहिए. हमें उस दौर की तैयारी करनी चाहिए.’’ उन्होंने कहा कि सरकार उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों सहित विभिन्न नीतिगत पहल के साथ उद्योग की मदद कर रही है.

चावला ने कहा, ‘‘ 2020 में 50 अरब डॉलर पर हम अपने विनिर्माण क्षेत्र का 10 प्रतिशत से थोड़ा अधिक थे. 2030 तक हमें भारत में विनिर्माण क्षेत्र का 20 प्रतिशत होना चाहिए.’’ उन्होंने कहा कि इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए उद्योग को सालाना आधार पर दोहरे अंक में वृद्धि करने की जरूरत है. सचिव ने कहा कि सरकार उद्योग व शिक्षा जगत के साथ मिलकर काम कर रही है ताकि 2030 तक उद्योग को 200 अरब डॉलर तक पहुंचने में मदद मिल सके.

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Diabetes Risk Factor: नींद की कमी से महिलाओं में बढ़ता है डायबिटीज का खतरा: रिसर्च

न्यूयॉर्क, 14 नवंबर (आईएएनएस). एक शोध के अनुसार महिलाओं में खासकर मेनोपॉज के बाद पर्याप्त नींद नहीं लेने से मधुमेह का खतरा हो सकता है. कोलंबिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में निष्कर्षों में पाया गया कि छह सप्ताह तक 90 मिनट की नींद की कमी से फास्टिंग इंसुलिन का स्तर कुल मिलाकर 12 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया. मेनोपॉज के बाद महिलाओं में इसका प्रभाव और भी अधिक स्पष्ट 15 प्रतिशत से अधिक था. सर्वोत्तम स्वास्थ्य के लिए नींद की अनुशंसित मात्रा प्रति रात सात से नौ घंटे के बीच है. Snake Venom: क्या सांप के जहर से होता है नशा? जानें इसकी लत, लक्षण, दुष्प्रभाव और उपचार के बारे में सब कुछ.

डायबिटीज केयर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन, यह दिखाने वाला पहला अध्ययन है कि छह सप्ताह तक बनी रहने वाली हल्की नींद की कमी, शरीर में बदलाव का कारण बनती है, जिससे महिलाओं में मधुमेह विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है. ऐसा माना जाता है कि खराब नींद का पुरुषों की तुलना में महिलाओं के कार्डियोमेटाबोलिक स्वास्थ्य पर अधिक प्रभाव पड़ता है.

यूनिवर्सिटी के वेगेलोस कॉलेज ऑफ फिजिशियन एंड सर्जन्स में पोषण चिकित्सा की एसोसिएट प्रोफेसर मैरी-पियरे सेंट-ओंज ने कहा, “अपने पूरे जीवनकाल में, महिलाओं को बच्चे पैदा करने, पालन-पोषण और मेनोपॉज के कारण अपनी नींद की आदतों में कई बदलावों का सामना करना पड़ता है.”

“पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं की यह धारणा है कि उन्हें पर्याप्त नींद नहीं मिल रही है.” अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 38 स्वस्थ महिलाओं को नामांकित किया, जिनमें 11 पोस्टमेनोपॉज़ल महिलाएं भी शामिल थीं, जो नियमित रूप से हर रात कम से कम सात घंटे सोती थीं.

अध्ययन में प्रतिभागियों को यादृच्छिक क्रम में दो अध्ययन चरणों से गुजरना पड़ा. एक चरण में, उन्हें अपनी पर्याप्त नींद बनाए रखने के लिए कहा गया, दूसरे में उन्हें अपने सोने के समय में डेढ़ घंटे की देरी करने के लिए कहा गया, जिससे उनकी कुल नींद का समय लगभग छह घंटे कम हो गया. इनमें से प्रत्येक चरण छह सप्ताह तक चला.

कुल मिलाकर इंसुलिन प्रतिरोध लगभग 15 प्रतिशत और मेनोपॉज महिलाओं में 20 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया. पूरे अध्ययन के दौरान सभी प्रतिभागियों के लिए औसत रक्त शर्करा का स्तर स्थिर रहा. सेंट-ओंज ने कहा, “लंबे समय तक, इंसुलिन-उत्पादक कोशिकाओं पर चल रहे तनाव के कारण वे विफल हो सकते हैं, जिससे अंततः टाइप 2 मधुमेह हो सकता है.”

हालांकि पेट की बढ़ी हुई चर्बी इंसुलिन प्रतिरोध का एक प्रमुख चालक है, शोधकर्ताओं ने पाया कि इंसुलिन प्रतिरोध पर नींद की कमी का प्रभाव वसा में वृद्धि के कारण नहीं था. सेंट-ओंज ने कहा, “तथ्य यह है कि हमने इन परिणामों को शरीर में वसा में किसी भी बदलाव से स्वतंत्र देखा है, जो टाइप 2 मधुमेह के लिए एक ज्ञात जोखिम कारक है, जो इंसुलिन-उत्पादक कोशिकाओं और चयापचय पर हल्की नींद में कमी के प्रभाव को दर्शाता है.”

भारत ने खोजा ला-इलाज पार्किंसन का उपचार, अमेरिका में क्लिनिकल ट्रायल

नई दिल्ली, 12 नवंबर: पार्किंसंस (पीडी) एक गंभीर रोग है और पूरी दुनिया में 10 मिलियन से अधिक लोग इससे पीड़ित हैं. कंपकंपी, पूरा शरीर या हाथ पांव का काफी ज्यादा कांपना, अकड़न, व्यक्ति की चाल धीमी पड़ जाना या चल न पाना इसके मुख्य दुष्प्रभाव हैं. यह बीमारी रोगियों में गंभीर डिप्रेशन का कारण भी बनती है. इस रोग के इलाज की कोई दवा बाजार में नहीं है. हालांकि अब भारत ने इस ला-इलाज बीमारी का उपचार ढूंढा है, जिसका क्लिनिकल परीक्षण अमेरिका में शुरू हो गया है.

दिल्ली विश्वविद्यालय ने एक खास प्रोटीन की पहचान की है, जिससे इस बीमारी का उपचार संभव है. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डीएस रावत और अमेरिका स्थित मैकलीन अस्पताल के प्रोफेसर किम द्वारा विकसित अणु (कोड एटीएच 399ए) का मानव चरण क्लिनिकल परीक्षण शुरू हो गया है. पीडी एक न्यूरो-डीजेनेरेटिव विकार है। इसके सामान्य लक्षण कंपकंपी, अकड़न, धीमी गति और चलने में कठिनाई हैं, जो संज्ञानात्मक और व्यवहार संबंधी समस्याओं जैसे अवसाद, चिंता और उदासीनता का कारण बनता है। इस रोग का प्राथमिक कारण मस्तिष्क के मध्य भाग में स्थित सब्सटेंशिया निग्रा में न्यूरॉन कोशिकाओं की मृत्यु है. यह डोपामाइन की कमी का कारण बनता है। कुछ प्रोटीन ऐसे हैं जो डोपामाइन न्यूरॉन्स के अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं.

अब इस गंभीर बीमारी का इलाज ढूंढने की दिशा में प्रोफेसर डीएस रावत के नेतृत्व में शोधकर्ताओ ने मूल रूप से संश्लेषित एक अणु (एटीएच 399ए) का चरण वन नैदानिक परीक्षण शुरू किया है। इस अनुसंधान में मैकलीन अस्पताल, दिल्ली विश्वविद्यालय का सहयोगी है. प्रोफेसर रावत ने कहा, यह एक लंबी यात्रा रही है। इस प्रकार का कुछ बनाने में बहुत अधिक ऊर्जा लगती है। कभी-कभी आप धैर्य खो देते हैं क्योंकि हमें अनुसंधान अनुदान हासिल करने से लेकर पेटेंट दाखिल करने और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर हस्ताक्षर करने तक अनगिनत बाधाओं का सामना करना पड़ता है. लेकिन हम केंद्रित थे, और अब हमारा अणु उस स्तर पर है जहां से हम मानवता के लाभ के लिए कुछ उम्मीद कर सकते हैं.

2021 में, दिल्ली विश्वविद्यालय और मैकलीन अस्पताल ने एक समझौता किया कि नूरऑन फार्मास्यूटिकल्स इस अणु को विकसित करने के लिए एक भागीदार के रूप में कार्य करेगा। बाद में हानऑल बायोफार्मा और डेवूंग फार्मास्युटिकल ने नूरऑन फार्मास्यूटिकल्स के साथ हाथ मिलाया और इस चरण 1 नैदानिक परीक्षण में पहले मानव स्वस्थ प्रतिभागी को खुराक देना शुरू किया. चरण 1 का अध्ययन 18 से 80 वर्ष की आयु के स्वस्थ प्रतिभागियों को मौखिक रूप से दिए जाने पर एटीएच399ए की सुरक्षा, सहनशीलता, फार्माकोकाइनेटिक्स और खाद्य प्रभाव का आकलन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.

अध्ययन में एकल आरोही खुराक (एसएडी) और एकाधिक आरोही खुराक (एमएडी) दोनों समूह शामिल होंगे। एटीएच399ए के चरण 1 नैदानिक परीक्षण के प्रारंभिक परिणाम 2024 की दूसरी छमाही में आने की उम्मीद है. पार्किंसंस रिसर्च के लिए माइकल जे फॉक्स फाउंडेशन, एटीएच399ए के चरण 1 नैदानिक परीक्षण का समर्थन करेगा. शोधकर्ताओं के मुताबिक पशु मॉडल अध्ययनों में इस अणु से पता चला है कि यह महत्वपूर्ण नूर1 एंजाइम को सक्रिय करता है। इससे डोपामाइन न्यूरॉन की मृत्यु रुक जाती है और यह सिन्यूक्लिन प्रोटीन के एकत्रीकरण को भी रोकता है. इसलिए इसमें दो अलग-अलग तंत्र हैं और यह काम हाल ही में नेचर कम्युनिकेशंस द्वारा प्रकाशित किया गया था.

प्रोफेसर रावत का कहना है, “हाल ही में नूरऑन फार्मास्यूटिकल्स से शोध अनुदान मिला, लेकिन चूंकि मैं अभी प्रतिनियुक्ति पर हूं, इसलिए डीयू के नियम हमें पीएचडी छात्रों को लेने की अनुमति नहीं देते हैं.” प्रोफेसर रावत ने आईएएनएस को बताया कि अमेरिका के साथ यह सहयोगात्मक कार्य 2012 में शुरू हुआ। मैकलीन अस्पताल के प्रोफेसर किम ने पार्किंसंस रोग के उपचार के लिए एक अणु विकसित करने के लिए संभावित सहयोग के लिए प्रोफेसर रावत से संपर्क किया। तब से दोनों टीमों ने अथक परिश्रम किया और दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की टीम द्वारा संश्लेषित 600 से अधिक नए यौगिकों की जांच की.

प्रोफेसर रावत ने कहा कि यह सबसे चुनौतीपूर्ण समस्याओं में से एक है. दुर्बल करने वाले इस विकार का कोई इलाज नहीं है। ऐसा कोई ज्ञात उपचार नहीं है जो इस रोग की प्रगति को धीमा कर सके. उपलब्ध औषधीय उपचार लक्षणों को लक्षित करते हैं और समय के साथ अपनी प्रभावकारिता खो देते हैं, जिनमें से अधिकांश डिस्केनेसिया जैसे गंभीर मोटर दुष्प्रभावों के साथ होते हैं। हालांकि अब उनकी टीम इस इस बीमारी के उपचार की ओर बढ़ रही है.

Snake Venom: क्या सांप के जहर से होता है नशा? जानें इसकी लत, लक्षण, दुष्प्रभाव और उपचार के बारे में सब कुछ

Snake Venom: नशा करने के लिए दुनियाभर में निकोटीन (Nicotine), कैनबिस (Cannabis) और अफीम (Opium) जैसे नशीले पर्दार्थों का सेवन किया जाता है, जबकि कई लोगों ने नशा करने के लिए स्मोकिंग, इंजेक्शन लगाना या सांप का जहर (Snake Venom) भी पीना शुरु कर दिया है. जो लोग हेरोइन (Heroin) और ओपिओइड (Opioids) से भी उच्च स्तर का नशा करने की ख्वाहिश रखते हैं, उन लोगों ने अब सांप (Snake) और बिच्छुओं (Scorpions) के जहर की ओर अपना रुख किया है. कहा जाता कि सांप के जहर का नशा कुछ अलग ही किस्म का होता है, इसलिए नशे में झूमने के लिए लोगों में सांप के जहर का चलन बढ़ रहा है. हालांकि यहां सवाल उठता है कि क्या सांप का जहर या सांप का काटना वास्तव में आपको नशे की लत का शिकार बना सकता है? आइए जानते हैं सांप के जहर की लत, लक्षण, दुष्प्रभाव और इसके उपचार से जुड़ी हर जरूरी बात…

सांप के जहर की दवा और लक्षण

अगर आप सोच रहे हैं कि क्या वास्तव में सांप के जहर से नशा हो सकता है तो इसका जवाब हां है. जी हां, सांप का जहर आपको नशा महसूस करा सकता है. सांप के काटने के लक्षण बताते हैं कि कुछ सांपों का जहर न्यूरोटॉक्सिक (Neurotoxic) होता है और इसके परिणामस्वरूप एनाल्जेसिया (Analgesia) या दर्द महसूस करने में असमर्थता होती है. ओपिओइड और अन्य नशीले पदार्थों के सबसे प्रचलित दुष्प्रभावों में से एक एनाल्जेसिया है, यही मुख्य कारण है कि इन दवाओं की सिफारिश की जाती है. निकोटिनिक एसिटाइलकोलाइन रिसेप्टर्स (Nicotinic Acetylcholine Receptors) (nAChRs), जो न्यूरोट्रांसमीटर एसिटाइलकोलाइन (Neurotransmitter Acetylcholine) पर प्रतिक्रिया करते हैं, विशेष रूप से कोबरा के जहर में मौजूद न्यूरोटॉक्सिन के रूपों से प्रभावित होते हैं. यह भी पढ़ें: Rave Party With Snake Venom: नोएडा के रेव पार्टी में सांप के जहर का इस्तेमाल, पांच गिरफ्तार; बिग बॉस विनर एल्विश यादव का नाम FIR में दर्ज

सांप के जहर के सेवन का दुष्प्रभाव

नशा करने के लिए सांप के जहर का उपयोग करना काफी जोखिम भरा है, क्योंकि जहर तो आखिर जहर ही होता है. यह एक सुरक्षित मनोरंजक दवा नहीं है, क्योंकि सांप इसका उपयोग अपने शिकार को पैरालाइज करने और मारने के लिए करते हैं. इसके अलावा, सांप के जहर का सेवन करते समय अधिक खुराक लेने या इससे होनेवाली मौत को रोकने का कोई तरीका नहीं है, क्योंकि अगर व्यक्ति सीधे सांप के काटने के जरिए जहर का सेवन कर रहा है तो इससे एक बार में दिए गए जहर की मात्रा का अनुमान लगाना काफी मुश्किल है. हालांकि सांप के जहर में पाई जाने वाली न्यूरोटॉक्सिसिटी उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया पैदा कर सकती है, लेकिन इससे मौत और पैरालिसिस होने का जोखिम काफी बढ़ सकता है.

क्या है इसका उपचार?

सांप के गंभीर जहर का इलाज एंटीवेनम से किया जाता है, जितनी जल्दी एंटीवेनम दिया जाता है, उतनी जल्दी स्थायी जहरीली क्षति को रोका जा सकता है. सांप के जहर की अधिक मात्रा लेने वाले किसी भी व्यक्ति को अस्पताल ले जाने में जरा सी भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए. सांप के जहर का नशा करने वाले व्यक्ति को आपात स्थिति में अकेला छोड़ने के बजाय फौरन अस्पताल ले जाना चाहिए, क्योंकि वो बेहोश हो सकते हैं या फिर उन्हें चक्कर आ सकता है.

Oral Sex Worse Than Smoking: ओरल सेक्स धुम्रपान से भी ज्यादा खतरनाक, इससे हो सकता है गले का कैंसर, डॉक्टरों का दावा

एक युवा डॉक्टर ने दावा किया है कि गले के कैंसर के लिए धूम्रपान की तुलना में ओरल सेक्स ज्यादा खतरनाक है. डॉ. डारिया सदोव्स्काया ने एक वायरल टिकटॉक वीडियो में बताया कि अमेरिकन कैंसर सोसाइटी (एसीएस) द्वारा ऑरोफरीन्जियल कैंसर के रूप में जानी जाने वाली बीमारी के लिए नंबर एक जोखिम कारक के रूप में ओरल सेक्स है.

ओरल सेक्स के दौरान मानव पैपिलोमावायरस, जिसे आमतौर पर एचपीवी के रूप में जाना जाता है, यह प्रसारित हो सकता है. एचपीवी सबसे आम यौन संचारित संक्रमण है, जिसके हर साल अमेरिका में अनुमानित 13 मिलियन नए मामले सामने आते हैं.

सदोव्स्की ने कहा, “महिलाओं के साथ ओरल सेक्स करने से पुरुषों में गले का कैंसर होने की संभावना अधिक होती है, क्योंकि महिलाओं के जननांग क्षेत्र में [HPV] वायरस होने की संभावना अधिक होती है.”

Explained: क्यों गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं युवा? अच्छे खान-पान के साथ इन चीजों पर ध्यान देना है जरूरी

नयी दिल्ली, 30 अक्टूबर: चिकित्सकों का कहना है कि युवाओं को कड़ी मेहतन करने के साथ साथ स्वस्थ खान-पान, उचित नींद और समय पर व्यायाम कर अपने जीवनशैली को संतुलित बनाना सीखना चाहिए. उन्होंने कहा कि जरूरत से अधिक काम करने से लोग खराब जीवनशैली संबंधी बीमारियां की चपेट में समय से पहले ही आ रहे हैं. यह भी पढ़ें: Sudden Death By Stroke: स्ट्रोक से आचानक हो रही मौत! धूम्रपान और लंबे समय तक काम करने वालों को खतरा ज्यादा

कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि सप्ताह में 70 घंटे काम करने का नियम ‘‘जरूरत से अधिक महत्वाकांक्षी’’ होगा और उन्होंने कार्यस्थलों पर टीम का नेतृत्व करने वालों से जोर देकर कहा कि वे सदस्यों के बीच काम को सही तरीके से बांटें और ‘‘किसी एक व्यक्ति से बहुत अधिक काम लेने की कोशिश न करें’’, क्योंकि इसके कारण अकसर अत्यधिक शारीरिक एवं मानसिक थकान होती है.

इंफोसिस के सह-संस्थापक एन. आर. नारायण मूर्ति ने हाल में सुझाव दिया था कि देश की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करना चाहिए. सोशल मीडिया मंचों पर कुछ लोगों ने ‘अधिक काम करने की संस्कृति’ को कथित तौर पर बढ़ावा देने के लिए मूर्ति की आलोचना की, जबकि कई अन्य लोगों ने इसकी प्रशंसा भी की.

दिल्ली में चिकित्सकों ने सचेत किया है कि जरूरत से अधिक काम करने से मधुमेह और सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस (ऐसी बीमारी जिसमें रीढ़ की हड्डी में सूजन आ जाती है) जैसी जीवनशैली संबंधी बीमारियां समय से पहले ही शुरू हो सकती हैं.

दिल्ली के अपोलो अस्पताल में आंतरिक चिकित्सा के वरिष्ठ सलाहकार डॉ सुरनजीत चटर्जी ने कहा, ‘‘कड़ी मेहनत का मतलब यह नहीं है कि आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान न रखें या उससे कोई समझौता करें। मेहनत करना ठीक है, लेकिन एक व्यक्ति को अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के साथ अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए.’’

उन्होंने ‘पीटीआई-’ से कहा, ‘‘इसलिए, काम को स्वस्थ खान-पान, स्वस्थ जीवन शैली, उचित नींद और समय पर व्यायाम के साथ संतुलित करना होगा.’’

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Sudden Death By Stroke: स्ट्रोक से आचानक हो रही मौत! धूम्रपान और लंबे समय तक काम करने वालों को खतरा ज्यादा

लखनऊ, 29 अक्टूबर : विशेषज्ञों ने कहा है कि व्यायाम की कमी, धूम्रपान और नौकरियाें में नियमित रूप से सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक बैठे रहना, रक्तचाप और मधुमेह का कारण बनता है. यह युवाओं में स्ट्रोक के लिए भी जिम्मेदार है. किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में न्यूरोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आर के गर्ग के अनुसार, “45 वर्ष से कम उम्र के लोगों में स्ट्रोक के मामले बढ़े हैं और इसका एक सामान्य कारण उच्च रक्तचाप है.”

प्रोफेसर गर्ग ने बताया, “40 से 50 वर्ष की आयु के बीच के पेशेवर अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. कार्यालय में बहुत अधिक तनाव, घर में अनियमित खान-पान और शारीरिक व्यायाम की कमी के कारण, वे उच्च रक्तचाप और मधुमेह के लिए आसान लक्ष्य बन जाते हैं। उच्च रक्तचाप उन्हें स्ट्रोक के प्रति संवेदनशील बनाता है.” प्रोफेसर गर्ग ने कहा, “किसी को लग सकता है कि ये लक्षण काम के बोझ के कारण अस्थायी हैं, लेकिन ये शुरुआती चेतावनी के संकेत हैं.”

”उन्होंने कहा, “स्ट्रोक के लक्षणों में चेहरे, हाथ या पैर में अचानक सुन्नता या कमजोरी शामिल है, खासकर शरीर के एक तरफ अचानक भ्रम, बोलने या समझने में परेशानी, एक या दोनों आंखों से देखने में अचानक परेशानी, चलने में अचानक परेशानी, चक्कर आना, संतुलन या समन्वय की हानि, बिना किसी ज्ञात कारण के अचानक गंभीर सिरदर्द यह सभी प्रारंभिक चेतावनी संकेत हैंं. केजीएमयू के मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ संकाय सदस्य प्रोफेसर कौसर उस्मान ने कहा कि “दफ्तर जाने वाले लोगों में उच्च रक्तचाप आम होता जा रहा है.”

एससी त्रिवेदी मेमोरियल ट्रस्ट अस्पताल की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अमिता शुक्ला ने कहा, “गर्भवती महिलाएं भी उच्च रक्तचाप और गर्भकालीन मधुमेह से पीड़ित होती हैं. यह उन्हें विशेष रूप से रक्तस्रावी स्ट्रोक के प्रति संवेदनशील बनाता है.” स्ट्रोक, जिसे अक्सर ‘ब्रेन अटैक’ कहा जाता है, यह तब होता है जब मस्तिष्क के एक हिस्से में रक्त का प्रवाह बाधित हो जाता है. स्ट्रोक मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं, पहला इस्केमिक स्ट्रोक, जो सबसे आम है, रक्त के थक्के से अवरुद्ध धमनी के कारण होता है. यहां रक्त को मस्तिष्क के हिस्से तक पहुंचने से रोका जाता है.

दूसरे, रक्तस्रावी स्ट्रोक रक्त वाहिका के फटने के कारण होता है, जिससे रक्तस्राव होता है. उच्च रक्तचाप और धमनीविस्फार इस प्रकार के स्ट्रोक का कारण बन सकते हैं. तीसरा प्रकार ट्रांसिएंट इस्केमिक अटैक है जिसे ‘मिनी स्ट्रोक’ भी कहा जाता है. यह मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह में एक अस्थायी रुकावट है.